अखबार की आत्मकथा
मैं एक अखबार की बात कर रहा हूं। मेरा जन्म लगभग 150 साल पहले हुआ था। तब से लोग मुझे पढ़ रहे हैं। मैं बहुत कम कीमत पर उपलब्ध हूं। पहले एक कॉपी की कीमत कुछ पैसे लगती थी लेकिन अब यह 2 से 5 रुपये हो जाती है। कई जगहों पर मुझे घर-घर पहुँचाने के लिए एक व्यक्ति नियुक्त किया गया है। अक्सर डिलीवरी वाले के लेट होने पर घरवाले परेशान हो जाते हैं। लोग मुझसे समाचार पढ़ना पसंद करते हैं। सुबह चाय चखकर पढ़ा जाता हूँ।
मुझमें तरह-तरह की खबरें छपती हैं। देश के किस हिस्से में क्या हो रहा है, देश में क्या समस्या चल रही है, अपराध क्या है, बॉलीवुड के अलावा राजनीति वगैरह की खबरें मेरे पास आती हैं. पहले मेरी काफी डिमांड थी। इंटरनेट के आज के आधुनिक युग में सभी लोगों को इंटरनेट पर जानकारी मिलती है। वह अखबार नहीं पढ़ता है। आजकल अखबारों की जगह रेडियो, टीवी, मोबाइल, इंटरनेट आदि मीडिया उपलब्ध हैं। लेकिन इसके बावजूद पढ़ने के शौकीन सभी लोग पढ़ना पसंद करते हैं।
कुछ लोगों को अखबार पढ़ने की इतनी आदत होती है कि वे उनके बिना नहीं रह पाते हैं। मुझे तैयार करते समय सबसे पहले खबरों को कलेक्ट किया जाता है और कंप्यूटर की मदद से टाइप करके उसकी साफ-सुथरी कॉपी तैयार की जाती है। इसके बाद मुझे मशीन में प्रिंट किया जाता है। जिस शहर में कॉपियां बनती हैं, वहां से मुझे ट्रांसपोर्ट के जरिए अलग-अलग गांवों में भेजा जाता है। इसके बाद करंट पेपर बांटने वाले लोग मुझे मेरे घर पहुंचा देते हैं। मैं इस सफर का भरपूर लुत्फ उठाता हूं। जब लोग खुल कर मुझे पढ़ते हैं, तो मुझे किसी और की सेवा करने का संतोष मिलता है।
मैंने प्राचीन काल से लेकर आज के आधुनिक युग तक कई लोगों की मदद की है। पहले के जमाने में जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था, मुझमें छपी खबर को पढ़कर कई लोग अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट हो गए। भारत के अनेक महान नेताओं ने मेरे सहयोग से अपने विचारों को पूरे देश की जनता तक पहुँचाया था। इसलिए मैं इस देश और समाज के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान देता हूं। एकाग्रता के साथ पढ़ने से स्मृति और एकाग्रता में सुधार होता है। इसलिए सभी को प्रतिदिन कम से कम आधा घंटा समाचार पत्र पढ़ना चाहिए।
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Source: Internet
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