अलंकार की परिभाषाएं

 अलंकार की परिभाषाएं   

अलंकार का सामान्य अर्थ है - गहना या आभूषण जो देह की शोभा बढ़ाते हैं। काव्य संदर्भ में भी इसे शोभा बढ़ाने वाले धर्म और तत्व के रूप में लिया जाता है।  जिस प्रकार आभूषण स्त्री के सौंदर्य को बढ़ा देते हैं। उसी प्रकार अलंकार काव्य के सौंदर्य का बढ़ा देते हैं। भामह के अनुसार


'न कान्तमपि निर्भूषं विभाति वनिता मुखम्।'

अर्थात नारी का मुख सुंदर होते हुए भी आभूषणों के बिना शोभा नहीं देता।


'अलंकरोति इति अलंकार' अर्थात् जो अलंकृत करता है वह अलंकार होता है। अलंकार शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- अलम् +  कार, यहां  अलम् का अर्थ  है- भूषण।  इस प्रकार जो भूषित करता है वह अलंकार है।




भारतीय साहित्य में संस्कृत आचार्यों ने अलंकार को परिभाषित करने का प्रयास किया है।


(क).भामह के अनुसार 

"वक्राभिधेय शब्दोक्तिरिष्टावाचामंलंकृति:" 

अर्थात् शब्द और अर्थ के वैचित्र्य को अलंकार कहते हैं।

(ख).दंडी के अनुसार  

"काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते" 

अर्थात् अलंकार काव्य के शोभाकर धर्म हैं

(ग).वामन के अनुसार 

"काव्यशोभाया: कर्तारो धर्मा गुणा: दतिशय हेतवस्त्वलंकारा:" 

अर्थात् काव्य का शोभाकारक धर्म गुण है और अलंकार उसे अतिशयता प्रदान करता है। किंतु अन्य स्थल पर वे अलंकार को सौंदर्य का पर्यावाची बता देते हैं, यथा-सौंदर्यमलंकारा काव्यं ग्रह्ययमलंकारात्।अर्थात व्यापक रूप में सौंदर्य मात्र को अलंकार कहते हैं और उसी से काव्य ग्रहण किया जाता है।

अलंकार के प्रकार 

अलंकार मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं -


१. शब्दालंकार

२. अर्थालंकार

१. शब्दालंकार:- 

जहाँ शब्दों का सहारा लेकर सौंदर्य को बढ़ाया जाता है। अर्थात् शब्दों से चमत्कार उत्पन्न किया जाता है वहाँ शब्दालंकार होता है।

हिंदी व्याकरण अलंकार । Hindi Vyakaran Alankaar । शिक्षा विचार। Shiksha Vichar



शब्दालंकार के भेद 

१. अनुप्रास अलंकार 

२. पुनोरुक्ति अलंकार 

३. यमक अलंकार 

४. श्लेष अलंकार 

५. वक्रोक्ति अलंकार 

२. अर्थालंकार - 

जब अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार उत्पन्न किया जाता है तब अर्थालंकार होता है।

अर्थालंकार के भेद


1. उपमा अलंकार 

2. रूपक अलंकार 

3. उत्प्रेक्षा अलंकार 

4. संदेह अलंकार 

5. भ्रांतिमान अलंकार

6. निदर्शना अलंकार 

7. विभावना अलंकार 

8. विरोधाभास अलंकार 

9. मानवीकरण अलंकार 

10. अन्योक्ति अलंकार 

11. विशेषोक्ति अलंकार 

12. समासोक्ति अलंकार   

13. अतिश्योक्ति

14. अत्युक्ति अलंकार

15. प्रतिवस्तूपमा अलंकार 

16.असंगति  अलंकार

17.अर्थान्तरान्यास अलंकार 

18. व्यतिरेक अलंकार

19. प्रतीप अलंकार 

20. दृष्टांत अलंकार 

21.अनन्वय अलंकार

22.वशेषग विपर्यय अलंकार 

23.स्वभावोक्ति अलंकार

१. अनुप्रास अलंकार 

अनुप्रास शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है। अनु + प्रास, अनु का अर्थ होता है बार बार और प्रास का अर्थ होता है वर्ण। इस प्रकार जहाँ किसी वर्ण की क्रम से अनेक बार आवृत्ति हो वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।

उदाहरण - 

तरनी तनुजा तट तमाल तरूवर बहु छाया। 



स्पष्टीकरण: कवि भारतेंदु की इस पंक्ति में 'त' वर्ण की आवृत्ति हुई है। अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।


अनुप्रास अलंकार के भेद

(क).छेकानुप्रास

(ख).वृत्यानुप्रास

(ग).लटानुप्रास

(घ).अन्त्यानुप्रास

(ड).श्रुत्यानुप्रास 



(क).छेकानुप्रास अलंकार 

जहां पर अनेक व्यंजनों की एक बार स्पष्टत: एवं क्रमस: आवृत्ति की गई हो वहां छेकानुप्रास अलंकार होता है।

उदाहरण 

वन्दौ गुरू पद पदुम परागा। 

सुरचि सुवास सरस अनुरागा 

मानस


स्पष्टीकरण: यहां पर सु, स, आदि अनेक व्यंजनों की एक-एक बार आवृत्ति की गई है।


(ख).वृत्यानुप्रास अलंकार 

जहां पर वृत्यानुप्रास वर्णों की अथवा वर्ण की अनेक बार आवृत्ति की गई हो वहां पर वृत्यानुप्रास अलंकार होता है।

उदाहरण 

कंकन किंकनी नूपुर धुनि सुनि। कहत लखन सन राम हृदय गुनि।। 

मानस



स्पष्टीकरण: यहाँ पर न, नी, नि की आवृत्ति है। इस लिए यहाँ पर अनुप्रास अलंकार है। 


(ग). लाटानुप्रास अलंकार 

जहां शब्द और अर्थ की समान रूप से आवृत्ति की जाती है किंतु अन्वय करने पर उनके अभिप्राय में भिन्नता आ जाती हो वहां लाटानुप्रास अलंकार होता है।

उदाहरण 

पूत कपूत तो क्यों धन संचय। पूत सपूत तो क्यों धन संचय।।



(घ). अन्त्यानुप्रास अलंकार 

जहां पर पद या पद के अंत में सभी पदों में समान स्वर और व्यंजन की आवृत्ति की जाती है वहां अन्त्यानुप्रास अनुप्रास अलंकार होता है। हिंदी भाषा में ऐसे पदों को तुकांत कविता या तुकांत पद कहते हैं। यह आवृत्ति क्योंकि पद के अंत में ही होती है इसलिए इसे अन्त्यानुप्रास कहते हैं।

उदाहरण 

धीरज धरम मित्र अरू नारी। आपत्ति काल परखिए चारी।

मानस

(ड).श्रुत्यानुप्रास अलंकार 

जहां पर एक ही उच्चारण स्थान से उच्चरित होने वाले व्यंजनों की समानता पाई जाती है वहां पर श्रुत्यानुप्रास अनुप्रास अलंकार होता है।

उदाहरण 

जाहि जन पर ममता अति छोहू। जेहि करुना करि कीन्ह न काहू।।


मानस

2.पुनोरुक्ति अलंकार

जब समान अर्थ वाले शब्द प्रयुक्त हो परंतु उनका अभिप्राय भिंड हो तो इस प्रकार के अलंकार को पुनरुक्ति अलंकार कहते हैं।

उदाहरण


काल समय तब आयहुँ, मूढ़ सुनेसि मम बात।

अस कहि आदि पवन सूद, कालनेमि इक लात।।



स्पष्टीकरण:


यहाँ काल व समय दोनों समानार्थी हैं, परंतु उनका आश्य भिन्न है। काल  शब्द का यहाँ मृत्यु के लिए प्रयोग किया गया है।

3.यमक अलंकार

जब एक शब्द एक से अधिक बार आए तथा उसका अर्थ अलग-अलग हो तो यमक अलंकार होता है। यमक अलंकार के प्रयोग से कविता में सुंदरता आ जाती है।

उदाहरण- 


कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।

वा खाए बौराय जग, या पाए बौराए ।।


स्पष्टीकरण 

यहाँ प्रथम कनक का अर्थ धतूरा तथा दूसरे कनक का अर्थ सोना है।

4.श्लेष अलंकार

श्लेष से  तात्पर्य  है चिपका हुआ। जब एक शब्द के दो अलग-अलग अर्थ निकलते हो तो  वहाँ श्लेष अलंकार होता है।

उदाहरण 


रहिमन पानी राखिए बिनु पानी सब सून।

पानी गये न ऊबरे मोती मानस चून।।



स्पष्टीकरण 

इस उदाहरण में पानी के तीन अलग कलग अर्थ - कांति, आत्मसम्मान तथा जल हैं। यहाँ श्लेष अलंकार है।

5.वक्रोक्ति अलंकार

जब किसी वाक्य में वक्ता के कथन के अर्थ से भिन्न  अर्थ की कल्पना की जाए तो वहां वक्रोक्ति अलंकार होता है।

उदाहरण 


एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहां पर है ?

उसने कहा पर कैसा उड़ गया सपर है




वक्रोक्ति अलंकार के भेद 

(क) काकु वक्रोक्ति अलंकार

(ख) श्लेष वक्रोक्ति अलंकार 

(क) काकु वक्रोक्ति अलंकार

वक्ता द्वारा उच्चरित शब्दों का उसकी  कंठ ध्वनि के कारण जब  कोई श्रोता अन्य अर्थ ग्रहण करता है तो उसे काकु वक्रोक्ति अलंकार कहते हैं।

उदाहरण

मैं सुकुमारी नाथ बन जोगू।

(ख) श्लेष वक्रोक्ति अलंकार 

जहाँ वक्ता के द्वारा उच्चरित शब्दों का श्रोता श्लेष के कारण अन्य अर्थ ग्रहण करता है। वहां श्लेष वक्रोक्ति अलंकार होता है।

उदाहरण

एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहां अपर है ?

उसने कहा अपर कैसा उड़ गया सपर है

स्पष्टीकरण 

यहां जो अपर शब्द है वह वक्ता ने दूसरे कबूतर के लिए प्रयोग किया है किंतु श्रोता उसे अपर अर्थात बिना पर वाला समझता है, और कहता है अपर कैसा उड़ गया सपर है अर्थात् जो उड़ गया वो तो सपर था। कहने का तात्पर्य है उसके तो पर थे। 

१. उपमा अलंकार 

जहां गुण, धर्म या क्रिया के आधार पर उपमेय की तुलना उपमान से की जाती है। वहां उपमा अलंकार होता है।

उपमा अलंकार के अंग

(क) उपमेय अथवा प्रस्तुत, जिसकी  तुलना की जाती है। 

(ख) उपमान अथवा अप्रस्तुत, जिससे तुलना की जाती है।

(ग)वाचक शब्द अर्थात् वह शब्द जिससे समानता प्रकट की जाए , जैसे- सा, सी, सम, सरिस।

(घ) साधारण धर्म अर्थात् वह गुण जिसकी समता की की जाती है।

उदाहरण

पीपर पात सरिस मन डोला।

उपमेय- पात

उपमान-मन

वाचक शब्द- सरिस 

साधारण धर्म- डोला

महंगाई बढ़ रही है निरंतर द्रुपद सुता के चीर सी

बेकारी बढ़ रही है  चीरती अंतर्मन  को तीर सी 

स्पष्टीकरण 

यहां पहली उपमा में महंगाई उपमेय है, दूसरी उपमा में बेकारी उपमेय है। महंगाई के लिए द्रुपद सुता के चीर तथा बेकारी के लिए तीर उपमान है दोनों उपमाओं में दो अलग-अलग वस्तुओं में समानता का कथन हुआ है।

उपमा अलंकार के भेद


(क) पूर्णोपमा अलंकार

(ख) लुप्तोपमा अलंकार 

(क) जिसमें उपमा के सभी अंग होते हैं उसमें पूर्णोपमा अलंकार होता है।


उदाहरण 

पीपर पात सरिस मन डोला।

(ख) लुप्तोपमा- इसमे उपमा के सभी अंग नहीं आते हैं। एक या दो या तीन अंग न होने पर इसे लुप्तोपमा अलंकार कहते हैं।


उदाहरण


कल्पना सी अतिश्य कोमल

स्पष्टीकरण 

इसमें उपमेय नहीं है। इसलिए यहां लुप्तोपमा अलंकार है।

१. रूपक अलंकार

जहां उपमेय पर उपमान का आरोप करते हुए दोनों में अभेद बताया जाए तो वहां रूपक अलंकार होता है। उपमा की तरह रूपक में भी उपमेय उपमान दोनों अलग-अलग कहे जाते हैं।

उदाहरण 

अंबर पनघट में डुबो रही तारा घट उषा नागरी।

स्पष्टीकरण 

यहां आकाश रूपी पनघट में उषा रूपी स्त्री तारा रूपी घड़े को डुबो रही है। यहां आकाश पर पनघट का, उषा पर स्त्री का तथा तारों पर घड़े का आरोप होने से रूपक अलंकार है।

रूपक अलंकार के तीन भेद होते हैं-


(क). निरंग रूपक

(ख). सांग रूपक

(ग). परम्परित रूपक 

(क). निरंग रूपक

जहां केवल उपमेय में उपमान का आरोप किया जाता है वहां ने निरंग रूपक अलंकार होता है। प्रत्येक वस्तु मूल होती है और उसके अंग भी होते हैं। मूल वस्तु को अंगी कहा जाता है। निरंग शब्द का अर्थ ही होता है 'अंग रहित'  कुछ विद्वान इसे निरवयव भी कहते हैं।

उदाहरण

विधु वदनी सब भांति संवारी। सोह न वसन बिना वर नारी।।

(ख). सांग रूपक अलंकार 

जहां पर उपमेय के सभी अंगो अथवा अवयवों पर उपमान के सभी अंगो या अवयवों का आरोप वर्णित हो, वहां पर सांग रूपक अलंकार होता है। इस अलंकार रूप में अंगों सहित अंगी उपमेय पर अंगों सहित अंगी उपमान का आरोप किया जाता है। इसमें अनेक आरोप वर्णित होते हैं।

उदाहरण 

अंबर पनघट में डुबो रही तारा घट उषा नागरी।

स्पष्टीकरण 

यहां आकाश रूपी पनघट में उषा रूपी स्त्री तारा रूपी घड़े को डुबो रही है। यहां आकाश पर पनघट का, उषा पर स्त्री का तथा तारों पर घड़े का आरोप होने से रूपक अलंकार है।

(ग).परम्परित रूपक अलंकार 

जहां पर एक आरोप दूसरे आरोप का कारण होता है,वहां पर परम्परित रूपक अलंकार होता है परमप्रीत का अर्थ होता है परंपरा या क्रम। इस प्रसंग में कम से कम दो आरोप होते हैं। जिनमें एक आरोप कारण होता है और दूसरा कार्य। कहने का तात्पर्य है कि एक आरोप कर देने के पश्चात दूसरे आरोप का निरूपण करना आवश्यक हो जाता है।

उदाहरण 


राम कथा सुंदर करतारी। संश्य विहग उड़ावन हारी।

मानस

स्पष्टीकरण

उपर्युक्त चौपाई में रामकथा पर करतार (तालियों) का आरोप किया गया है। और संशय पर पक्षी का आरोप किया गया है यहां पर 'संशय विहग, आरोप कार्य है। 'रामकथा-करतारी' आरोप कारण है। अतः कार्य-कारण की परंपरा का चित्रण होने के कारण यहां पर पारम्परित रूपक अलंकार है।

3.उत्प्रेक्षा अलंकार

जहां उपमेय में उपमान की कल्पना या संभावना व्यक्त की जाए वहां उत्प्रेक्षा अलंकार माना जाता है। इसके वाचक शब्द हैं- मनु, मानहु, जनु,  जानहु, मानो,  जानो आदि।

उदाहरण


चमचमात चंचल नयन बिच घूंघट पन झीन।

मानहु सुरसरिता विमल जल  उछरत जुग मीन।।

स्पष्टीकरण: बिहारी के इस दोहे में घू़घट के झीने पट में चमचमाते चंचल नयनों के लिए कहा गया है कि मानों वे गंगा के निर्मल जल में उछलती दो मछलियांँ हैं। इसी संभावना या कल्पना के कारण यहां उत्प्रेक्षा अलंकार है। नायिका के नयन उपमा एवं मछली उपमान हैं।


4.संदेह अलंकार

जहां उपमेय में उपमान का संदेह हो वहां संदेह अलंकार होता है।

उदाहरण 


सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।

सारी ही की नारी है कि नारी की ही सारी है।।

 5.भ्रांतिमान अलंकार

जहां भ्रम वश उपमेय को उपमान मान लिया जाए वहां भ्रांतिमान अलंकार होता है।

 उदाहरण 


नाक का मोती अधर की कांति से, बीज दाड़िम का समझ   कर भ्रांति से,

देख कर सहसा शुक हुआ मौन है सोचता है अन्य शुक कौन है ? 

स्पष्टीकरण 

उपरोक्त पंक्तियां मैथिलीशरण गुप्त रचित साकेत से हैं। इसमें नायिका उर्मिला का वर्णन है। उर्मिला ने नाक में मोती पहना है। इस मोती पर उसके होंठ की   लाल आभा पड़ रही है। जिससे मोती अनार के दाने जैसा दिखता है। कोई तोता उसे अनार का दाना मानकर चुगने बढ़ता है तभी उर्मिला की नाक में दूसरे तोते का भ्रम हो जाता है।

6.निदर्शना अलंकार

वाक्यों के अर्थ नितांत भिन्न भिन्न होते हुए भी जहां सामान धर्म के आधार पर उन में अभेद आरोपित किया जाए वहां निदर्शना अलंकार होता है।

उदाहरण


चुप बैठ जानवरों से संधि करके।

आंगन में सोना है लगा के आग घर में।।

7.विभावना अलंकार 

जहां कारण के बिना ही कार्य हो जाता है वहां पर विभावना अलंकार होता है 

उदाहरण


ऐसे ही नीके लगे बिन काजल के नैन।

विभावना अलंकार दो प्रकार के होते हैं-


(क). शादी विभावना 

(ख). आर्थी विभावना

(क). शादी विभावना 

इसमें कारण के अभाव का शब्द के द्वारा कथन किया जाता है।

उदाहरण


निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटि छवाय।

बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करै सुभाय।।

स्पष्टीकरण 

यहां पानी और साबुन वस्त्रादि के मैल साफ करने के कारण हैं। इनके अभाव में चित्त के निर्मल होने का वर्णन किया गया है कि निंदक को पास में रखनें से वह दोषों को उजागर करेगा जिससे व्यक्ति अपने दोष दूर कर लेगा।

(ख). आर्थी विभावना

यहां कारण का अभाव अर्थ द्वारा कथित होता है

उदाहरण


'बिनु पद चलै सुनै बिनु काना।' 

स्पष्टीकरण 

यहां अर्थ के द्वारा ईश्वर की महिमा का पता चलता है कि उसकी कृपा से मनुष्य बिना पैर के चल सकता है तथा बिना कान के सुन सकता है।

8.विरोधाभास अलंकार 

जहां कथनों में परस्पर विरोध ना होने पर भी प्रयुक्त शब्दों से विरोध सा प्रतीत हो वहां विरोधाभास अलंकार होता है।

उदाहरण 


 या अनुरागी चित्त की गति समुझै नहीं कोय

 ज्यों-ज्यों बूढ़े श्याम रंग त्यों त्यों उज्ज्वल होय।

9. मानवीकरण अलंकार 

प्रकृति या जड़ पदार्थों में मनुष्य के गुणों का आरोप करके चेतन के समान उनकी चेष्टाओं का चित्रण किया जाए तो वहां मानवीकरण अलंकार होता है।

उदाहरण

फूल हंसे कलियां मुस्कुराए 

स्पष्टीकरण 

यहां फूलों को सजीव मान लिया गया है। अतः यहां मानवीकरण अलंकार है

10.अन्योक्ति अलंकार 

जहां उपमान के वर्णन के माध्यम से उपमेय का वर्णन किया जाए वहां अन्योक्ति अलंकार होता है। अप्रस्तुत से प्रस्तुत अर्थ की व्यंजना होने के कारण इसे आप प्रस्तुत प्रशंसा भी कहते हैं। उदाहरण

 जिन दिन देखे वह कुसुम, गई सु बीति बहार।

 अब अली रही गुलाब में, अपत कंरीली डार।।

11.विशेषोक्ति अलंकार 

जहां कारण के मौजूद रहने पर भी कार्य की उत्पत्ति न हो वहां विशेषोक्ति अलंकार होता है। उदाहरण- 

देखो दो दो मेघ बरसते मैं प्यासी की प्यासी

12.समासोक्ति अलंकार 

जहां प्रस्तुत अर्थ और आप्रस्तुत अर्थ दोनों का बोध प्रस्तुत कथन द्वारा हो जाए वहां समासोक्ति अलंकार होता है। उदाहरण 

यदपि होत सुंदर कमल, उलटो तदपि सुझाव।

जो नित पूरन  चंद सो करत विरोध बनाव।।

13. अतिशयोक्ति अलंकार 

जहां किसी वस्तु अथवा कथन का बहुत बड़ा चढ़ाकर वर्णन किया जाए वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है।

उदाहरण


देख लो साकेत नगरी है यही।

स्वर्ग से मिलने गगन को जा रही।।

14. अत्युक्ति अलंकार 

किसी भी बात को इस प्रकार कहना कि बात हास्यास्पद लगने लगे वहां अत्युक्ति अलंकार होता है।

15. प्रतिवस्तुपमा अलंकार 

जहां उपमेय और उपमान के समान गुणों की चर्चा हो परंतु दोनों के लिए भिन्न-भिन्न शब्दों का प्रयोग हो वहां प्रतिवस्तुपमा अलंकार होता है। उदाहरण 

सिंह सुता क्या कभी स्यार से प्यार करेगी 

क्या पर नर का हाथ कुलस्त्री कभी धरेगी ?

16.उदाहरण अलंकार 

जहां पर किसी सामान्य बात को जियो जैसे आदि वाचक शब्दों से स्पष्ट किया जाए वहां उदाहरण अलंकार होता है। उदाहरण 

नीकी पै फीकी लगै, बिनु अवसर की बात।

जैसे बरनत युद्ध में, रस सिंगार न सुहाय।।

17. असंगति अलंकार 

कारण एवं कार्य में संगति न होने पर असंगति अलंकार है। उदाहरण 

दृग उरझत टूटत कुटुंब जुरत चतुर चित्त प्रीति।

परति गांठ दुर्जन हिये दई नई यह नीति ।।

18. अर्थान्तरान्यास अलंकार

जहां किसी विशेष बात को कह कर उसका समर्थन सामान्य बात से किया जाए अथवा किसी सामान्य बात को कह कर उसका समर्थन किसी विशेष बात से  किया जाए। वहां अर्थान्तरान्यास अलंकार होता है।

उदाहरण 


सामान्य से - सबै सहायक सबल के, कोउ न निबल सहाय।

विशेष से- पवन जगावत आगि को, दीपहिं देन बुझाए।।

19. व्यतिरेक अलंकार

जहां कारण बताते हुए उपमेय की श्रेष्ठता उपमान से बताई गई हो, वहां व्यतिरेक अलंकार होता है उदाहरण 

का सरवरि तेहिं देउं मयंकु। चांद कलंकी वह निलंकू।।

20.प्रतीप अलंकार 

प्रतीप से आश्य उल्टा या विपरीत होता है। प्रतीप अलंकार उपमा का विपरीत होता है इस अलंकार में उपमान को लज्जित, पराजित या हीन दिखाकर उपमेय की श्रेष्ठता बताई जाती है। उदाहरण

सिय मुख समता किमि करै चंद वापुरो रंक।

21. दृष्टांत अलंकार

 जहां उपमेय, उपमान और साधारण धर्म का बिंब-प्रतिबिंब भाव होता है वहां दृष्टांत अलंकार होता है।

उदाहरण 


बसै बुराई जासु तन, ताही को सन्मान।

भलो भलो कहि छोड़िए, खोटे ग्रह जप दान।।

21.अनन्वय अलंकार

जहां उपमेय की समता में कोई उपमान नहीं आता अर्थात् जो अपने समान खुद हो, वहां अनन्वय अलंकार होता है। उदाहरण -

यद्यपि अति आरत-मारत है,

भारत के सम भारत है।

22. विशेषग विपर्यय अलंकार 

विपर्यय से आश्य उलटफेर से है। जब किसी वाक्य में अर्थ की सुंदरता लाने के लिए विशेषण का स्थान उलट दिया जाए तो विशेषण तो वशेषग विपर्यय अलंकार होता है। यह लक्षणा पर आधारित अलंकार है। उदाहरण 

इस करुणा कलित हृदय में,  क्यों विकल रागनी बजती।

स्पष्टीकरण:

इस पंक्ति में रागिनी को विकल कहा गया है। हमें ज्ञात है कि विकल मनुष्य होता है न कि रागिनी जो विशेषण मनुष्य के लिए होना चाहिए वह रागिनी के लिए प्रयुक्त हुआ है अतः यहां विशेषण विपर्यय अलंकार है।

23. स्वभावोक्ति अलंकार 

जब किसी वस्तु का स्वाभाविक वर्णन किया जाता है तब स्वभावोक्ति अलंकार होता है। उदाहरण

चितवनी भोरे भाय की गोरे मुख मुसकानी।

लगनी लटके आलीर गरे चित खटकती नित आनी।।

स्पष्टीकरण

नायक नायिका की सखि से कहता है कि भोलेपन की चितवन, गोरे मुख की हंसी और उसका अपनी सखियों से लटक लटक कर गले लिपटना। ये उसकी सारी आंगिक चेष्टाएँ मुझे नित खटकती रहती हैं। यहां नायिका की स्वाभाविकता का वर्णन किया गया है।

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