अगर आईना/दर्पण ना होता
आईना/दर्पण का उपयोग आज हर क्षेत्र में किया जाता है। दर्पण दैनिक जीवन में एक महत्वपूर्ण वस्तु है। आजकल हर घर में एक आईना होता है। दर्पण छोटे से लेकर बड़े आकार के होते हैं, कुछ इतने छोटे होते हैं कि आप उन्हें अपने पर्स में रख सकते हैं, जबकि कुछ स्थानों पर ऊंची इमारतों पर विशाल दर्पण लगाए जाते हैं।
अपनी दैनिक जीवन शैली में हम कई ऐसी आवश्यक चीजों का उपयोग कर रहे हैं जिनके बिना एक सुगम जीवन संभव नहीं है। लेकिन बचपन से ही ये चीजें हमारे आस-पास होती हैं, हमें इनके महत्व का एहसास नहीं होता है। ऐसी ही एक उपयोगी वस्तु है दर्पण। दर्पण को अंग्रेजी में मिरर और हिंदी में शीशा कहते हैं।
घर से बाहर निकलने वाला हर व्यक्ति चाहे वह पुरुष हो या महिला कम से कम एक बार अपना चेहरा आईने में जरूर देखता है। कॉलेज में पढ़ने वाली लड़कियों के साथ-साथ कामकाजी लड़कियों के पर्स में भी आईना होता है। मोटरसाइकिल सवार युवक भी बाइक के शीशे में खुद को देखना नहीं भूलता। लब्बोलुआब यह है कि हम आईने के बिना अधूरे हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर आईना ना होता...? क्या हो सकता था?
शीशा न होता तो आदमी को बड़ी हानि होती। सबसे बड़ी बात तो यह है कि वह अपने ही रंग रूप को नहीं जान सकता था। इंटरव्यू या शादी समारोह में जाना नामुमकिन होता। बार-बार हमें किसी और से पूछना पड़ता था कि हम कैसे दिखते हैं। शीशा न होता तो कई जगहों पर साज-सज्जा का काम अधूरा सा लगता। फोटो स्टूडियो के साथ-साथ हेयर कटिंग पार्लर में जाते समय दर्पण आवश्यक हैं। आज दुनिया भर में दर्पणों के कारण कई आविष्कार हुए हैं। भौतिकी में प्रकाश के नियमों को दर्पणों के कारण ही समझा जा सकता है। कई वैज्ञानिक अपने अध्ययन में दर्पण को महत्वपूर्ण स्थान देते हैं। इसके अलावा शीशा न होता तो गाड़ी चलाते समय भी बड़ी असुविधा होती। पीछे से क्या आ रहा है यह देखने के लिए उसे अपनी पीठ घुमानी पड़ती। ऐसे में हादसों की संख्या में इजाफा होता।
आईना/दर्पण न होने से हमें बहुत नुकसान होता। लेकिन यह कुछ लोगों के लिए फायदेमंद होता। जो लोग दिखने में बदसूरत होते हैं या जिनका चेहरा किसी कारणवश खराब हो जाता है, उन्हें इससे लाभ होता है। न जाने उनका चेहरा कैसा दिखता है, उनमें हीनता की भावना विकसित नहीं हुई होगी।
लेकिन कोई बात नहीं, दर्पण न होने के नुकसान फायदे से अधिक हैं। इसलिए शीशा न होता तो मानव जीवन खंडित ही रह जाता। दर्पण हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। लेकिन बेहतर होगा कि हम इंसान बार-बार खुद को आईने में देखने की बजाय अपने काम पर ध्यान दें।
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Source: Internet
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