मेरा प्रिय खिलाडी

 मेरा प्रिय खिलाडी

खेलों का मनुष्य के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। खेलों से उसका शरीरिक और मानसिक विकास होता है। मनुष्य के अनेक गुण खेल के मैदान में ही विकसित होते हैं। इस तरह खेल शिक्षा की भाँति ही मनुष्य की प्रगति में योगदान करते हैं।


परिचय–

फुटबॉल मुझे शुरू से ही पसंद रहा है। फुटबॉल के संसार में पेले का नाम उसी प्रकार प्रसिद्ध है जैसे हॉकी में ध्यानचन्द्र विश्व प्रसिद्ध हैं। पेले के पिता ने अपने पुत्र का नाम प्रसिद्ध वैज्ञानिक थॉमस अल्वा एडिसन के नाम पर एडसन रैंटेस डो नैसिमेंटो रखा था। फुटबॉल के खेल को ऊँचाई तक पहुँचाने में पेले का महान योगदान है।



पेले दक्षिण अमेरिका के ब्राजील का निवासी था। उनके खेल को ब्राजील और लैटिन अमेरिका के खेल के रूप में पहचाना जाता है। पेले के फुटबॉल ने विश्व में ब्राजील अर्जेंटिना और पराग्वे जैसे अनेक देशों को प्रसिद्धि और सम्मान दिलाया है।


बचपन से ही फुटबॉल में रुचि–

पेले की रुचि फुटबॉल खेलने में बचपन से ही थी, ब्राजील के एक छोटे शहर बोरू की बस्ती में एक गरीब परिवार रहता था, इसी परिवार में जन्मा पेले जुराब में कागज के टुकड़े भरकर गेंद बनाकर खेला करता था। वह चाय की एक दुकान पर काम करता था, 16 जुलाई, सन् 1950 में ब्राजील फीफा विश्वकप का आयोजन हुआ था।


रियो में ब्राजील का मुकाबला उरुग्वे से था। सेकेण्ड हाफ के दूसरे मिनट में ब्राजील की टीम के फार्वर्ड फ्रिएका ने विपक्षी टीम पर गोल कर दिया लेकिन उसके बाद उरुग्वे ने दो गोल किए। अन्तिम स्कोर उरुग्वे–2, ब्राजील–1 रहा। अपने पिता को रोते देखकर पेले ने उनसे वायदा किया कि वह विश्व कप जीतकर लाएगा। उस समय पेले की उम्र नौ साल थी।


फुटबॉल और पेले–

पेले को फुटबॉल तथा फुटबॉल को पेले के नाम से पुकारना अनुचित नहीं है। अपने दो दशकों के कैरियर में पेले ने फुटबॉल को अद्भुत ऊँचाइयाँ दी हैं। उसकी बिजली जैसी गति, चीते के समान फुर्ती, सीने पर गेंद को साधकर आगे बढ़ना, आश्चर्यजनक ड्रिब्लिंग और हेडर के द्वारा गेंद को गोल में प्रवेश कराने की कला को पेले का व्यक्तिगत कौशल ही कहा जायेगा। सन् 1958 के विश्व कप फाइनल में स्वीडन एक गोल से आगे हो गया था तब पेले के कारण ब्राजील ने वह फाइनल पाँच–दो से जीता था। इनमें से दो गोल पेले ने किए थे। उस समय उसकी उम्र 17 साल थी।


फुटबॉलर और लेखक–

पेले अपने फुटबॉल के खेल के लिए प्रसिद्ध है। उनके कारण दक्षिणी अमेरिका तथा ब्राजील को प्रशंसा और प्रसिद्धि प्राप्त हुई है। पेले एक महान खिलाड़ी तो थे ही, एक अच्छे लेखक भी थे। फुटबॉल से संन्यास लेने के वर्षों बाद पेले ने अपनी आत्मकथा लिखी।


इसमें उसने अपने बचपन की गरीबी, चाय की दुकान पर काम करने तथा जुराब में कागज के टुकड़े भरकर बनाई गई गेंद से खेलने का जिक्र किया है। पेले की दूसरी किताब “पेले : हाई सॉकर मैटर्स” भी प्रकाशित हो चुकी है।


उपसंहार–

पेले फुटबॉल के पर्याय हैं। अपनी शक्ति और खेलने को कला के द्वारा पराजय को जीत के शिखर पर पहुँचाने की गाथा का नाम ही पेले है। फुटबॉल के खेल को चाहने वाला कोई भी व्यक्ति पेले को कभी भूल नहीं सकता। 

स्त्रोत : इंटरनेट 

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